वो अफ्साना जिसे अंजाम तक ले जाना ना हो मुमकिन/ उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा। इतना खूबसूरत शेर लिखने वाले शायर साहिर लुधियानवी की आज पुण्यतिथि है। साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च 1921 को लुधियाना पंजाब में हुआ और 25 अक्टूबर 1980 को मुंबई में उन्होंने अंतिम सांस ली। अपने 59 साल के जीवन मे उन्होंने कलम से कागज पर कुछ ऐसी जादूगरी की कि अपने निधन के 38 साल बाद भी साहिर लुधियानवी आज भी हम सभी के बीच जीवंत मौजूद है। बस फर्क इतना है कि पहले उनका शरीर था और अब उनके शब्द है। तो चलिए आज हम ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’ और ‘कभी-कभी मेरे दिल में ये ख़्याल आता है’ जैसे गीत के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके साहिर लुधियानवी जी के पुण्यतिथि पर उनके 20 सबसे लोकप्रिय शेर पढ़कर उन्हें याद करते हैं।
1) अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
2) चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
3) देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
4) दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
5) ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
6) गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
7) हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
8) हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
9) इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
10) कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
11) माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
12) मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ वो तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
13) मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
14) नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती
15) फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को
16) तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
17) तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है तेरे हाथों में मेरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं
18) उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
19) वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
20) वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा