खिड़कियां आंखों की मेरी, कब खुलेगी क्या पता? कब सुनेंगे कान मेरे, कुछ कहा कुछ…
कविता
सोशल मीडिया: यह सोचना कितना भीषण है
यह सोचना कितना भीषण है कि अपनी तुम्हारी और बाकी सभी की दुनिया में जो…
गोपाल दास नीरज के काव्य से चुनिंदा पंक्तियां
हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना…
चलकर इन्सानियत के रास्ते पर ग़ैरों को भी इन्सान बना
छोड़ दामन ऐयाशी आवारापन जग में अपनी पहचान बना चलकर जिस रास्ते पर अब तक…
मुझे एक प्यारी सी पहचान चाहिए
पहली दफा तुम्हें देखा तो ऐसा लगा मानो, ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है, पहली…
वोट डालने चलो रे साथी, लोकतंत्र के बनो बाराती
वोट डालने चलो रे साथी, लोकतंत्र के बनो बाराती एक वोट से करो बदलाव नेताजी…
कुछ छोटे सपनों के बदले (Kuch Chote sapno ke badle)
कुछ छोटे सपनों के बदले, बड़ी नींद का सौदा करने, निकल पड़े हैं पांव अभागे,…
असर बुजर्गो की नैमतों का हमारे अन्दर से झॉंकता है
असर बुजर्गो की नैमतों का हमारे अन्दर से झॉंकता है पुरानी नदिया का मीठा पानी…